Saturday, July 7, 2012

लापता




लापता 
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कुछ पता नहीं चलता 
शम्भूक के कटे हुए सिर का 
छींटे तो पड़े होंगे रक्त के !
कहाँ हैं वो ?
क्या धो दिया गया उन्हें सोमरस से ?
या यज्ञ की वेदी के नीचे दबा दिया गया ?

क्या हुआ शबरी का
जूठन खिलाने के बाद ?
क्या राम ने दे दी उसे
वृद्धावस्था पेंशन ?
कहाँ दबी होगी उसकी फ़ाइल ?

और तो और
ना जाने कहाँ है
एकलव्य का कटा हुआ अंगूठा भी ,
नहीं दीखता 'गुरु द्रोणाचार्य' वाले
मेट्रो स्टेशन पर भी
या द्रोणाचार्य की किसी तस्वीर में ?

कहाँ गए ऐसे लोग ?
कहाँ गयी उनकी स्मृतियाँ ?

ठहरो !
धरती हिल रही है
और
पाताल तोड़ कर कोई
निकल रहा है बाहर !!!

2 comments:

  1. अच्छी कविता है, ‘हंस’ में भेजकर देखिए।

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