Thursday, April 22, 2010

खूब दिलकश है ये अन्दाज बहुत


खूब दिलकश  है ये अन्दाज बहुत,
खामुशी कह रही है राज बहुत

उनको भी सू-ए-मैकदा देखा 
जो कि बनते थे पाकबाज़ बहुत 

अभी कुछ मर तो नहीं जायेंगे 
गो तबियत से हैं नासाज़ बहुत 

जहां में जाविदाँ* रखते हैं रकीब 
मत करो दोस्तों पे नाज़ बहुत 

अश्क, उम्मीद, बेवफाई, प्यार 
हैं अभी ज़िन्दगी के साज़ बहुत 

परिंदों और इंतज़ार करो 
अभी छोटी है ये परवाज़**बहुत 

*जाँविदा =अमर 
**परवाज़=उड़ान 



Wednesday, April 7, 2010

सानिया शोएब

सानिया शोएब की शादी की खबर मीडिया के लिए दुधारू गाय बन कर आई है.  बाबाओं और भूतों के अलावा सेलिब्रेटीस ही सबसे ज्यादा बिकने वाली खबर होते हैं. फिर अगर बात भारत पकिस्तान के सितारों की हो तो मसाले की कमी ही क्या है!  देशभक्ति का तड़का भी लगाया जा सकता है बड़ी आसानी से! पाक मीडिया इस को पकिस्तान की जीत बता रहा है तो भारतीय मीडिया ( खासकर इलेक्ट्रोनिक) इसमें भारत की शिकस्त दिखला रहा है! मुसलामानों को भारत पर बोझ मानने वालों के हाथ तो जैसे बटेर लग गई है . जिस देश का आम मुसलमान हमेशा संदेह की दृष्टि से देखा जाता हो वहां सानिया को गद्दार कहने वालों पर आश्चर्य कैसा? 
     जब सानिया से स्पष्ट रूप से यह कह दिया है कि शादी के बाद भी  वो भारत के लिए ही खेलेंगी और व्यक्तिगत तौर पर अपने पति का समर्थन करेंगी , तो इतना हो हल्ला क्यों मचाया जा रहा है?   जयशंकर प्रसाद की एक कहानी है "पुरस्कार". इसकी नायिका अपने देशप्रेम के लिए अपने प्रेमी का बलिदान करती है और अपने  व्यक्तिगत प्रेम के लिए खुद उसके साथ सज़ा पाकर उसका साथ भी देती है. ज़ाहिर है यह कहानी उन लोगों ने नहीं पढ़ी होगी जो सानिया का अंध विरोध कर रहे हैं.  अगर स्थिति इसके उलट होती यानी लड़की पाकिस्तान की और क्रिकेटर भारत का होता तो भी मीडिया ऐसी ही बेवकूफाना  हरकतें करता जैसी वो अब कर रहा है. हाँ , तब "देशभक्त" भारतीयों की कुंठा ज़रूर शांत हुई होती!  सबको सन्मति दे ---- संविधान !

Monday, April 5, 2010

ऐसे बोर्ड


जिस जगह मैं रह्ता हूँ वो कोई आतंकवादी जगह नही है. लेकिन प्रशासन को बच्चों पर भरोसा नही. एक तरफ सरकार उन्नत भविष्य और बाल सुधार की बात करती है तो दूसरी तरफ ऐसे बोर्ड लगाए जा रहे हैं. ये बकवास है. बच्चों के ठेंगे से !

सख्त मनाही खेलने पर है , फूल तोड्ने पर नही गोया खेल खेल मे ही बच्चे उद्यान (बगीचे का सरकारी नाम) को तबाह कर रहे हैं! इको फ्रेन्ड्ली भी होता प्रशासन अगर फूल तोड्ने पर सख्त मनाही लगा देता !! इसी उद्यान मे एक जल प्रपात ( झरने का सरकारी नाम ) लगा है जिसमे जल आज तक कभी नही दिखा !

सांवली लड़कियां

क्या तुमने देखा है  उषाकाल के आकाश को? क्या खेतो में पानी पटाने पर मिट्टी का रंग देखा है? शतरंज की मुहरें भी बराबरी का हक़ पा जाती हैं  जम्बू...