केरल
एक सुंदर जगह है। यहां के वायनाड जिले में केंद्रीय विद्यालय, कल्पेट्टा
के राजभाषा विभाग के बैनर तले एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी
प्रेमचंद जयंती की पूर्व-संध्या पर हुई। विषय था, प्रेमचंद और बाल
मनोविज्ञान। हर्ष की बात है कि केरल के आदिवासी बहुल इस इलाके में प्रेमचंद
को जानने, समझने और चाहने वाले खूब लोग हैं। यद्यपि यह एक सरकारी
कार्यक्रम था, इसका तेवर जनोन्मुख था। राजभाषा की जटिलताओं से दूर बच्चों
के प्यारे लेखक प्रेमचंद की सरल भाषा वाली रचनाएं थीं। बच्चों के बनाये गये
पोस्टर थे, उनकी सहभागिता थी। वक्ताओं में डॉ सिंधु (एर्नाकुलम
विश्वविद्यालय, एर्नाकुलम) और डॉ मिनी प्रिया (सेंट थोमस कॉलेज, त्रिशूर)
ने अपने विचार व्यक्त किये।
डॉ सिंधु ने प्रेमचंद के जीवन से जुडी बारीक बातों को
बच्चों के सामने सरल ढंग से पेश किया। उनके कॉलेज के कुछ विद्यार्थियों ने
पूस की रात कहानी का मलयालम अनुवाद किया था, जिसे हमारे विद्यालय की दसवीं
कक्षा की एक छात्रा अंजू सी ने प्रस्तुत किया। इस RECREATION में केरल की
संस्कृति के अनुरूप ही बदलाव कर दिये गये थे। इस प्रयास को बच्चों ने खूब
पसंद किया। इसके अलावा सिंधु जी ने प्रेमचंद के जीवन से जुडी यादगार
तस्वीरों को कंप्यूटर के जरिये प्रस्तुत किया। उन्होंने बच्चों से प्रेमचंद
की ही तरह साधारण किंतु महत्वपूर्ण मुद्दों पर लिखने की अपील भी की।
डॉ मिनी प्रिया जी ने अपने सारगर्भित भाषण में
प्रेमचंद के साहित्य को आजादी के बाद के परिवेश में समझने पर बल दिया।
उन्होंने हरिशंकर परसाई की एक रचना से उद्धृत एक प्रसंग का उल्लेख किया। एक
बच्चे द्वारा स्वतंत्रता के बुनियादी अर्थ पर ही सवाल उठाया जाता है, जब
उसे घर में ही परिवार द्वारा अनेक गुलामियां सहन करनी पड़ती हैं। प्रेमचंद
ऐसे ही बच्चों के कलाकार थे। प्रेमचंद बच्चों ही नहीं, बचपन को बचाने पर बल
देते हैं, ऐसी बातें मिनी प्रिया जी के भाषण से निकल कर सामने आयीं।
उन्होंने विद्यालय के बच्चों के योगदान की भी सराहना की और कहा कि ऐसे ही
बच्चे प्रेमचंद की संवेदना का विषय थे।
कार्यक्रम में जिन बच्चों ने सहभागिता की उनमें से कुछ
हैं… श्रीजिता, श्रेयस, हरिता, अंजलि जो जेम्स, अक्षय किशन, उन्नी कृष्णन,
ब्लेसन, जोन, श्रद्धेय, आर्या, श्रेया, अक्षय, रिशिका, एबिन जकारिया,
अश्वती और जिना थोमस।
कार्यक्रम में श्रद्धा, सुष्मिता मेरी रोबिन्सन,
श्रीमती मिनी, विजेंद्र कुमार मीना और अश्वती ने सक्रिय योगदान दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रधानाचार्या केजी सुजया ने हिंदी के इस
कार्यक्रम के लिए अतिथियों को बधाई दी और हिंदी के प्रोत्साहन के लिए अपनी
प्रतिबद्धता जतायी।
कार्यक्रम का संचालन नीलांबुज ने किया।
नोट : इस कार्यक्रम में कुछ लोगों ने
अपने शोध पत्र भी भेजे थे, जो स्कूल के विद्यार्थियों द्वारा पढ़े गये।
उनमें डॉ संजय कुमार, सुषमा कुमारी, और अमिष वर्मा उल्लेखनीय हैं। गौतलब है
कि केंद्रीय विद्यालय कल्पेट्टा ऐसे शोध पत्रों का स्वागत करता है, जो
प्रेमचंद और बाल मनोविज्ञान विषय पर हों। इनका संकलन करके इन्हें एक किताब
की शक्ल में छापने की योजना है। इस पुस्तक का लोकार्पण हिंदी दिवस के अवसर
पर किया जाएगा। अतः सुधी जनों से शोध पत्र आमंत्रित हैं। अंतिम तिथि 31
अगस्त, 2011 रखी गयी है। शोध-पत्र इस पते पर भेज सकते हैं…
NILAMBUJ SINGH
PGT (HINDI)
C/O RAJBHASHA VIBHAG,
KENDRIYA VIDYALAY, KALPETTA-673121
DIST – WAYANAD, KERALA
Email thenilambuj@gmail.com
Phone 09895853826
Blog http://nilambujciljnu.blogspot.in/