Monday, December 1, 2025

ज़ीस्त के दर्द से बेदार हुए

 ज़ीस्त के दर्द से बेदार हुए

इस तरह हम भी समझदार हुए
زیست کے درد سے بیدار ہوئے
اس طرح ہم بھی سمجھدار ہوئے
सच कहा तो कोई नहीं माना
झूठ बोला , सभी गुलज़ार हुए
سچ کہا تو کوئی نہیں مانا
جھوٹ بولا سبھی گلزار ہوئے
थे तो बेज़ार पर तबस्सुम को
लब पे रखा व आबदार हुए
تھے تو بیزار پر تبسم کو
لب پہ رکھا و آبدار ہوئے
बज़्म में खूब वाह-वाह मिली
अपनी नज़रों में शर्मसार हुए
بزم میں خوب واه واہ ملی
اپنی نظروں میں شرمسار ہوئے
इब्ने-मरियम* न कोई हमको कहे
अगरचे** हम भी संगसार*** हुए।
ابن مریم ن کوئی ہمکو کہے
اگرچہ ہم بھی سنگسار ہوئے
इश्क़ ने जीत ली दुनिया सारी
लाव लश्कर तेरे बेकार हुए।
عشق نے جیت لی دنیا ساری
لاو لشکر تیرے بیکار ہوئے
*=मरियम की संतान(हज़रत ईसा)
**=यद्यपि
***=घायल( पत्थरों की मार से)

जाने ये कैसी बेख़बरी है

 जाने ये कैसी बेख़बरी है

लब पर दिल की बात धरी है
इधर पड़े हैं ख़ाली बर्तन
उधर तिजोरी भरी-भरी है
हँसी देख भूखे बच्चे की
चांद रात भी डरी-डरी है
ग़ालिब, मीर, नज़ीर 'राम' हैं
मेरी ग़ज़ल फ़क़त शबरी है
'नील' भले शमशेर नहीं है
लेकिन कहता खरी-खरी है।

ज़ीस्त के दर्द से बेदार हुए

  ज़ीस्त के दर्द से बेदार हुए इस तरह हम भी समझदार हुए زیست کے درد سے بیدار ہوئے اس طرح ہم بھی سمجھدار ہوئے सच कहा तो कोई नहीं माना झूठ बोला ...