जाने ये कैसी बेख़बरी है
लब पर दिल की बात धरी है
हँसी देख भूखे बच्चे की
चांद रात भी डरी-डरी है
ग़ालिब, मीर, नज़ीर 'राम' हैं
मेरी ग़ज़ल फ़क़त शबरी है
'नील' भले शमशेर नहीं है
लेकिन कहता खरी-खरी है।
ज़ीस्त के दर्द से बेदार हुए इस तरह हम भी समझदार हुए زیست کے درد سے بیدار ہوئے اس طرح ہم بھی سمجھدار ہوئے सच कहा तो कोई नहीं माना झूठ बोला ...
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