Thursday, August 30, 2012

कागज़ी है पैराहन







आज प्यारी डायरी को लिखा फिर से,
खो गयी थी ये , ना जाने क्या हुआ था/
मिस किया था -
ये तो है बिल्कुल ही लाजिम./ आज फिर से 
रंग दिए पन्ने कई/ कुछ मज़ा आया.
मीत से जैसे मिले हों!
इन इशारों में ना जाने बात क्या है,
कागज़ी है पैराहन , अब क्या लिखें हम!!!

No comments:

Post a Comment

सांवली लड़कियां

क्या तुमने देखा है  उषाकाल के आकाश को? क्या खेतो में पानी पटाने पर मिट्टी का रंग देखा है? शतरंज की मुहरें भी बराबरी का हक़ पा जाती हैं  जम्बू...