क्या तुमने देखा है  उषाकाल के आकाश को?
क्या खेतो में पानी पटाने पर मिट्टी का रंग देखा है?
शतरंज की मुहरें भी जहां पा जाती हैं बराबरी का हक़  
उस जम्बूद्वीप भारत में क्या तुमने
 किसी साँवली लड़की को 
देखा है कभी गौर से ?
उन्हें काजल की तरह आँखों में बसाया नहीं गया
कलंक की तरह ढोया गया 
शर्म की तरह ढाँपा गया 
बुरी नीयत की तरह छिपाया गया
उन्हें फेयरनेस क्रीम से लेकर 
सीमेंट की बोरी तक 
बेचा गया
काला सोना बताकर 
लूटा गया।
दीपशिखा नहीं 
उसकी कालिख समझा गया!
उन्हें कूटा गया 
काली मिर्च समझकर
उनके चेहरे की किताब पर 
लगाया गया मेकअप का कवर 
साँवली लड़कियां 
उग आती हैं बाजरे की कलगी की तरह 
पक जाती हैं गेंहू की बालियों सी 
छा जाती हैं रात की मानिंद
जल थल आकाश कर देती हैं एक
और अपने आगोश में समेट लेती हैं 
पूरी पृथ्वी को. 
उन्हें खोजना हो तो 
विज्ञापनों में नहीं 
देखना किसी लाइब्रेरी की चौखट पर 
या धान के खेत में बुवाई करते हुए 
या रुपहले पर्दों के पीछे 
नेपथ्य में । 
उन्हें ढूंढों 
उन कहानियों और कविताओं में 
जिन्हें कभी पढ़ा या गाया नहीं गया . 
वहांँ मिलेगी तुम्हें वह साँवली लड़की 
जिसकी आँखों में तुम्हें शायद दिखे 
उसके दर्द का वह उद्दाम आवेग 
जिसे उसकी मुस्कराहट के बाँध ने 
थाम रखा है .
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