Thursday, July 22, 2010
Monday, July 19, 2010
उंगलियाँ बन गयीं जुबां अब तो...
उंगलियाँ बन गयीं जुबां अब तो ,
बेकली हो चली रवां अब तो 
ये बहारें भी जिनसे रश्क करें 
ऐसी आयी है ये खिज़ां अब तो 
सच कहीं दू......र जा के बैठ गया 
इतने हैं झूठ दर्मयाँ  अब तो 
हाल किससे कहा करे कोई 
पत्ता, बूटा  न गुलिस्ताँ अब तो 
तुम तो जज़्बात ले के बैठ गए 
वक़्त होगा ही रायगाँ अब तो 
बात कुछ कायदे की की जाए 
कर चुके उनको परेशां अब तो 
Subscribe to:
Comments (Atom)
सांवली लड़कियां
क्या तुमने देखा है उषाकाल के आकाश को? क्या खेतो में पानी पटाने पर मिट्टी का रंग देखा है? शतरंज की मुहरें भी जहां पा जाती हैं बराबरी का हक़ ...
- 
‘‘स्वच्छन्द काव्य भाव-भावित होता है, बुद्धि-बोधित नहीं। इसलिए आंतरिकता उसका सर्वोपरि गुण है। आंतरिकता की इस प्रवृति के कारण स्वच्छन्द का...
 - 
देखा विवाह आमूल नवल, तुझ पर शुभ पडा़ कलश का जल। देखती मुझे तू हँसी मन्द, होंठो में बिजली फँसी स्पन्द उर में भर झूली छवि सुन्दर, प्रिय क...
 - 
क्या तुमने देखा है उषाकाल के आकाश को? क्या खेतो में पानी पटाने पर मिट्टी का रंग देखा है? शतरंज की मुहरें भी जहां पा जाती हैं बराबरी का हक़ ...
 

