उंगलियाँ बन गयीं जुबां अब तो ,
बेकली हो चली रवां अब तो
ये बहारें भी जिनसे रश्क करें
ऐसी आयी है ये खिज़ां अब तो
सच कहीं दू......र जा के बैठ गया
इतने हैं झूठ दर्मयाँ अब तो
हाल किससे कहा करे कोई
पत्ता, बूटा न गुलिस्ताँ अब तो
तुम तो जज़्बात ले के बैठ गए
वक़्त होगा ही रायगाँ अब तो
बात कुछ कायदे की की जाए
कर चुके उनको परेशां अब तो
janaab .. bahut khoob farmaya !!! "इतने हैं झूठ दर्मयाँ अब तो " ... khoob ..
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
नीलाम्बुज, अच्छा लिखा. और लिखते रहिये. बधाई...
ReplyDeleteउंगलियाँ बन गयीं जुबां अब तो....................बहुत अच्छा,भावनाओ को बहुत अच्छे तरीके से अभिव्यक्त किया है,लिखना जारी रखिये,हम मित्रों की शुभकामनायें आपके साथ हैं.आपके मित्र इससे अधिक और क्या कर सकते हैं नीलाम्बुज जी ,
ReplyDeleteसच कहीं दू......र जा के बैठ गया
ReplyDeleteइतने हैं झूठ दर्मयाँ अब तो
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सच में बहुत अच्छी रचना.
'सच' है इसलिए काफी दूर बैठ गया है आकर. झूठ के बिंदु रचना और टिप्पणी के दरमियान आकर खड़े जो हो गए हैं.
सुन्दर ब्लॉग और अच्छे उदगार
ReplyDeleteआपके बारे में कुछ भी बखान करने में मेरा मैत्री सम्बन्ध बाधक बन रहा है . केवल इतना ही कहना चाहूँगा कि आपने जब ए लिखा होगा तो एक एक शब्द लिखने में जिस्म से लहू का एक एक कतरा कम किया होगा , प्रसून
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