(ये कविता डॉ॰ लक्ष्मी शर्मा द्वारा संपादित 'लड़की होकर सवाल करती है' किताब में प्रकाशित हुई है । बोधि प्रकाशन से । वहाँ इसका शीर्षक 'स्त्री तुम चिड़िया हो' दिया गया है। यहाँ प्रकाशित कविता का चित्र और मूल शीर्षक के साथ मूल कविता प्रस्तुत है। )
तुम चिड़िया हो या नदी
फूल हो या वसंत
तुम कागज़ हो या कलम
तुम संज्ञा हो या विशेषण
नहीं जानता
जानना चाहता भी नहीं
बस चाहता हूँ
कि तुम उड़ती रहो
मेरे मानस-गगन में
तुम बहती रहो सदानीरा जैसी
मेरे हृदय पटल पर
तुम करती रहो सुरभित
मेरी यादें ।
तुम्हें न लिख सकता हूँ
और ना ही पढ़ सकता हूँ
पर कर सकता हूँ महसूस
इतना - कि मानो तुम
स्वयं को पहचानो
मेरे स्पर्श से ।
मैं खोजना चाहता हूँ
तुम्हारे अंदर -
स्वयं को ।
सच
बस इतना ही चाहता हूँ ,
बस यही!
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