रूह में अपनी आ जाने दे 
ख़ुद को मुझ पर छा जाने दे
तेरी नज़रें दरिया दरिया
कश्ती बन लहरा जाने दे 
इश्क़, तसव्वुर सब अफ़साने 
बस इक बार सुना जाने दे 
मैं तुझको तो क्या समझूँगा
ख़ुद को अभी भुला जाने दे 
चाहा था कहना कुछ तुमसे 
समझा ना तूने , जाने दे । 
क्या तुमने देखा है उषाकाल के आकाश को? क्या खेतो में पानी पटाने पर मिट्टी का रंग देखा है? शतरंज की मुहरें भी जहां पा जाती हैं बराबरी का हक़ ...
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