Thursday, July 22, 2010

दिल की बातें करनी है...





'अकबर' सी धुन लायें कहाँ
'नासिर' सा फन पायें कहाँ

दर्द नहीं है इश्क नहीं
इल्म को लेकर जाएँ कहाँ

आम के कितने पेड़ कटे
कोयल पूछे -- गायें कहाँ ?

हंसती हुई इस दुनिया में
दिल को कहो रुलाएं कहाँ

अपना तो बस इक चेहरा
अय्यारी-फन पायें कहाँ

खुसरो, मीर, कबीर, नजीर
अपना दर्द जगाएं कहाँ

दिल की बातें करनी है
बस ये कहो सुनाएँ कहाँ

(तीन जून .... को सद्भावना एक्सप्रेस में दिल्ली से बलिया जाते हुए लिखी थी ये ग़ज़ल )


3 comments:

  1. दिल की बातें करनी है
    बस ये कहो सुनाएँ कहाँ
    ....yehin sunate rahiye. isase behtar jagah kya hogi
    (bahut khoob..shubhkamnayen)

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  2. बहुत सुन्दर नीलाम्बुज..
    छोटी बहर की अद्भुत सुन्दर ग़ज़ल.. और उससे भी बेहतर की बातें तुम्हारी हैं पर अपनी सी लगती हैं ..

    समर

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  3. सवाल हैं या सवालों की लड़ियाँ हैं,...?
    वैसे सवाल बेहतरीन हैं....
    अकबर, नासिर जैसा फन ना हो धुन ना हो तो फर्क क्या पड़ता है. शायर की अपनी खुद की भी तो एक धुन है वही सुनाये ना... हमें तो यही भाषा समझ में आती है...
    कोयल गर अब भी सवाल पूछती उपस्थित है तो फिर किसी दर्द और इश्क की जरुर भी नहीं है... लिखने के लिए..
    रुलायेंगे किसलिए ? रुलाने के बजाये हसीं वाले गीत लिखिए ना...

    खुसरो, मीर, कबीर, नजीर... ये गुजरे ज़माने के शायर..हमें तो अपने दिल की बातें सुनाने के लिए अपने ज़माने का कोई शायर चाहिए.....
    फिर सुनते जाइये ना...

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