बढ़ेगी मुल्क़ की रफ़्तार कब तक
उठेगी मखमली दीवार कब तक
ग़रीबी कब से रोज़े रख रही है
करेंगे क्यूँ मियाँ इफ़्तार कब तक
सबको यूसुफ़ बना कर छोड़ डाला
चलेंगे इस तरह बाज़ार कब तक
वो थाली, फूल, दीये ठीक है सब
दवा दरपन का पर दीदार कब तक
नहीं बाली, फ़क़त मजदूर हैं हम
करेंगे आप छिप कर वार कब तक
हम तो मिट्टी से कटते जा रहे हैं
रहेगी शायरी में धार कब तक
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