प्रेमचंद को पढ़ते हुए
प्रेमचंद को पढ़ते हुए
लिखी लोरियां, उन्हें छपाया , खूब कमाया/हमने माँ की ममता का भी दाम लगाया.
खूब पढ़ी थी हमने भी पुस्तक में कविता/बाज़ारों से गुज़रे तो कुछ काम ना आया
अब तो 'पेप्सी', 'बर्गर', 'कोला' भले लगे हैं/माँ के हाथों की रोटी में स्वाद ना आया
आज 'अमीना' के हाथों को जलते देखा/ फिर भी मेरे मन में 'हामिद' क्यूँ ना आया
तुम बच्चों सा हँस देते हो, रो देते हो/ 'नील' अभी दुनियादारी का ढंग ना आया!
खूब पढ़ी थी हमने भी पुस्तक में कविता/बाज़ारों से गुज़रे तो कुछ काम ना आया
अब तो 'पेप्सी', 'बर्गर', 'कोला' भले लगे हैं/माँ के हाथों की रोटी में स्वाद ना आया
आज 'अमीना' के हाथों को जलते देखा/ फिर भी मेरे मन में 'हामिद' क्यूँ ना आया
तुम बच्चों सा हँस देते हो, रो देते हो/ 'नील' अभी दुनियादारी का ढंग ना आया!
अच्छी रचना..बधाई.....
ReplyDeleteaise hi likhna jaari rakhye....aapki kavitao mein jaadu hai
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