ख़त मुहब्बत के जो ख़ून-ओ-अश्क़ से लिखते रहे
वो उसी पर ज्यामिति अल्ज़ब्र हल करते रहे
देख कर काली घटाएँ हम ग़ज़ल कहते रहे
और वो- “बस होगी बारिश आज-कल” कहते रहे
नाम सीने पर लिखा उनको दिखाया जब गया
मुँह फिरा कर वो तो “इट इज़ हॉरिबल” कहते रहे
ले गए जब बोतलों मे अपने अश्क़ों को हुज़ूर
प्रश्नवाचक में वो “कोई केमिकल?” कहते रहे
इस मुहब्बत की सियासत के वो आली हैं जनाब
हम तो बस देखा किए, वो दल-बदल करते रहे
हम भी आख़िर आदमी हैं कोई बेजाँ बुत नहीं
छल छला जाएंगे ग़र वो यूँ ही छल करते रहे
intermidte mein toh maine sochna bhi suru nahi kiya tha or aap itna likh gaye............hihihi
ReplyDeletenicee
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