कुछ कविताएँ समकालीन जनमत पत्रिका के पोर्टल पर प्रकाशित हुई थीं। आप इस लिंक के ज़रिये उन्हें पढ़ सकते हैं।
https://samkaleenjanmat.in/poems-by-nilambuj-saroj/?fbclid=IwY2xjawN7rhtleHRuA2FlbQIxMQBzcnRjBmFwcF9pZBAyMjIwMzkxNzg4MjAwODkyAAEeVwTH135Surw2IqZbnhOrzDVrQX4TZmtgUBbwWF6YWJZZPpbX3A-QQuZdCfQ_aem_f8OQWZW2ozWniZMbl9b28A
Saturday, November 8, 2025
समकालीन जनमत में कविताएँ
Sunday, August 3, 2025
सांवली लड़कियां
क्या तुमने देखा है उषाकाल के आकाश को?
क्या खेतो में पानी पटाने पर मिट्टी का रंग देखा है?
शतरंज की मुहरें भी जहां पा जाती हैं बराबरी का हक़
उस जम्बूद्वीप भारत में क्या तुमने
किसी साँवली लड़की को
देखा है कभी गौर से ?
उन्हें काजल की तरह आँखों में बसाया नहीं गया
कलंक की तरह ढोया गया
शर्म की तरह ढाँपा गया
बुरी नीयत की तरह छिपाया गया
उन्हें फेयरनेस क्रीम से लेकर
सीमेंट की बोरी तक
बेचा गया
काला सोना बताकर
लूटा गया।
दीपशिखा नहीं
उसकी कालिख समझा गया!
उन्हें कूटा गया
काली मिर्च समझकर
उनके चेहरे की किताब पर
लगाया गया मेकअप का कवर
साँवली लड़कियां
उग आती हैं बाजरे की कलगी की तरह
पक जाती हैं गेंहू की बालियों सी
छा जाती हैं रात की मानिंद
जल थल आकाश कर देती हैं एक
और अपने आगोश में समेट लेती हैं
पूरी पृथ्वी को.
उन्हें खोजना हो तो
विज्ञापनों में नहीं
देखना किसी लाइब्रेरी की चौखट पर
या धान के खेत में बुवाई करते हुए
या रुपहले पर्दों के पीछे
नेपथ्य में ।
उन्हें ढूंढों
उन कहानियों और कविताओं में
जिन्हें कभी पढ़ा या गाया नहीं गया .
वहांँ मिलेगी तुम्हें वह साँवली लड़की
जिसकी आँखों में तुम्हें शायद दिखे
उसके दर्द का वह उद्दाम आवेग
जिसे उसकी मुस्कराहट के बाँध ने
थाम रखा है .
चाय पीजिए
जब दिल में उठें वलवले तब चाय पीजिए
जब मन करे कि कुछ न करें ,चाय पीजिए।
पूरब में हों तो नींबू वाली चाय पीजिए
पच्छिम में हों तो दूध वाली चाय पीजिए
उत्तर में भरे ग्लास वाली चाय पीजिए
दक्कन में यूं कॉफी के साथ चाय पीजिए
बंगाली हैं मोशाय तो खा जाइए उसे
गुजराती हैं तो फूंक कर रसपान कीजिए
राष्ट्रीय एकता है यही चाय पीजिए।
क्रॉकरी में पिएं आप फ़क़त राष्ट्रवादी चाय
'चीनी' मिला के पीजिए तो देशद्रोही चाय
गर ढारिये पलेट में तो लोकजीवी चाय
गोष्ठी में अगर पीजिए तो बुद्धिजीवी चाय
पड़ जाए पिलानी तो एक कप ही बहुत है
जो मुफ्त मिले बाल्टी भर चाय पीजिए।
सर्दी में चाय पीजिए कंबल को ओढ़कर
गर्मी में चाय पीजिए हर बांध तोड़कर
बरसात हो तो साथ पकौड़ी के पीजिए
बारात हो तो साथ कचौड़ी के पीजिए
मौसम की कोई टोक नहीं रोक नहीं है
मिल जाए कोई यार तो बस चाय पीजिए।
ऑडी में बैठकर के उसे आइस टी कहें
बहुमंजिला इमारतों में ग्रीन टी कहें
करते हैं अगर डायटिंग तो भी इसे पिएं
राइटिंग करें या फाइटिंग हरगिज़ इसे पिएं
इंसानियत का खून पीना हो गया बहुत
इंसानियत के नाम आप चाय पीजिए।
नीलांबुज सरोज
21 मई, 2025
अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस
Saturday, August 2, 2025
Subscribe to:
Comments (Atom)
समकालीन जनमत में कविताएँ
कुछ कविताएँ समकालीन जनमत पत्रिका के पोर्टल पर प्रकाशित हुई थीं। आप इस लिंक के ज़रिये उन्हें पढ़ सकते हैं। https://samkaleenjanmat.in/poems...
-
‘‘स्वच्छन्द काव्य भाव-भावित होता है, बुद्धि-बोधित नहीं। इसलिए आंतरिकता उसका सर्वोपरि गुण है। आंतरिकता की इस प्रवृति के कारण स्वच्छन्द का...
-
डॉ कलाम! अच्छा हुआ आप चले गए। अच्छा हुआ आप हिन्दू ह्रदय सम्राटों के पैरों में बैठ गए अच्छा हुआ आप साईँ बाबा और शंकराचार्यों के आशीर्वाद...
-
देखा विवाह आमूल नवल, तुझ पर शुभ पडा़ कलश का जल। देखती मुझे तू हँसी मन्द, होंठो में बिजली फँसी स्पन्द उर में भर झूली छवि सुन्दर, प्रिय क...