Thursday, October 6, 2022

सांवली लड़कियां



क्या तुमने देखा है  उषाकाल के आकाश को?
क्या खेतो में पानी पटाने पर मिट्टी का रंग देखा है?
शतरंज की मुहरें भी बराबरी का हक़ पा जाती हैं 
जम्बूद्वीप भारत में क्या तुमने ,किसी साँवली लड़की को 
देखा है कभी गौर से ?

उन्हें काजल की तरह आँखों में बसाया नहीं गया
कलंक की तरह ढोया गया 
शर्म की तरह ढाँपा गया 
बुरी नीयत की तरह छिपाया गया

उन्हें फेयरनेस क्रीम से लेकर 
सीमेंट की बोरी तक 
बेचा गया
काला सोना बताकर 
लूटा गया।

दीपशिखा नहीं 
उसकी कालिख समझा गया!

उन्हें कूटा गया 
काली मिर्च समझकर
 
उनके चेहरे की किताब पर 
लगाया गया मेकअप का कवर 

साँवली लड़कियां 
उग आती हैं बाजरे की कलगी की तरह 
पक जाती हैं गेंहू की बालियों सी 
छा जाती हैं रात की मानिंद
जल थल आकाश कर देती हैं एक
और अपने आगोश में समेट लेती हैं 
पूरी पृथ्वी को. 

उन्हें खोजना हो तो 
विज्ञापनों में नहीं 
देखना किसी लाइब्रेरी की चौखट पर 
या धान के खेत में बुवाई करते हुए 
या रुपहले पर्दों के पीछे 
नेपथ्य में । 

उन्हें ढूंढों 
उन कहानियों और कविताओं में 
जिन्हें कभी पढ़ा या गाया नहीं गया . 

वहांँ मिलेगी तुम्हें वह साँवली लड़की 
जिसकी आँखों में तुम्हें शायद दिखे 
उसके दर्द का वह उद्दाम आवेग 
जिसे उसकी मुस्कराहट के बाँध ने 
थाम रखा है .

Saturday, May 23, 2020

परिंदे जब भी पर तोला करेंगे

परिंदे जब भी पर तोला करेंगे
दरीचे ख़्वाब के खोला करेंगे
अभी पूजा-नमाज़ें कर रहे हैं
ज़हर हम बाद में घोला करेंगे
जो अश्कों को बदल कर खून बेचें
वही पानी को कल 'कोला' करेंगे
अभी गुस्से का धूँआ उठ रहा है
बग़ावत का इसे शोला करेंगे
"हमें हक़ के लिए लड़ना पड़ा था"
नई पीढ़ी से हम बोला करेंगे

घातक कथाएँ

प्रकरण: एक

काशी नगरी में एक प्रक्षेपक नामक राजा राज्य करता था। नाम के अनुरूप ही वह प्रक्षेपण में अत्यंत कुशल था। 56 दिशाओं में उसका डंका बजा करता था।
एक बार उसके राज्य पर क्रोणासुर नामक एक अत्यंत बलशाली दैत्य ने हमला किया। यह महर्षि धनेश और अप्सरा सत्तावती की संकर संतान था। इसे असुरराज रोगेन्द्र का वरदान प्राप्त था कि बड़ी मुश्किल से परास्त किया जा सकेगा। भय मानो इसका रथ है, दुष्प्रचार इसका धनुष। असावधानी मानो इसके तीक्ष्ण शर हैं तो शीघ्रता इसकी गदा। इस शक्ति के मद में चूर क्रोणासुर सारी धरित्री पर ऐसे निःशंक विचरण कर रहा है जिस प्रकार कोई एंकर अपने पैनलिस्टों के समक्ष। प्रजा त्राहिमाम कर उठी मानो अपने अश्रु बहाकर पानी का बिल बचाना चाहती हो!
राजा प्रक्षेपक ने अपने आमात्य अति शातिर को बुलाया। सलाह षड्यंत्र होने लगे। अति शातिर ने कहा कि देखिए महाराज, इसे तो वरदान मिला हुआ है। जब चक्रवर्ती सम्राट ट्रम्पेन्द्र और अति कुटिल शिजिनेश आदि इसका कुछ न बिगाड़ सके, तो हम किस खेत की मूली हैं। इसलिए नीति यही कहती है कि धन का प्रबंध करके इसे रोकने का दिखावा किया जाए।
प्रक्षेपक को यह बात पसंद आ गयी। उसने सबसे पहले अपने संचारामात्य को बुलाया और कहा कल वैशाख कृष्ण द्वीतिया को द्वीतीय प्रहर में एक सभा आयोजित करो जिसमें हम प्रजा को 'अंतःकरण का वार्तालाप' इस पवित्र नामवाले संबोधन से संबोधित करेंगे। संचारामात्य ने ऐसा अतिशीघ्र किया क्योंकि जो आमात्य राजा के आदेशपालन में देरी करे उसे उसी प्रकार नष्ट हो जाना होता है जिस प्रकार आत्मश्लाघा बिना अहंकारी जन।
अगले दिन संबोधन में राजा प्रक्षेपक ने प्रजा से कहा कि संकट का समय आन पड़ा है। हम आपकी सुरक्षा करेंगे। घबराएं नहीं। राष्ट्र संकट में है, दान करें। राजा ने एक नया स्थान चुनकर वहां बड़ा सा एक कुँवा खुदवाया। यह इतना गहरा था जितनी सच्ची भक्ति। राजा ने कहा कि जिसे दान करना हो इस कुंए के पास खड़े प्रहरी को दे दे। वो कुवें में डाल देगा। प्रजा में कुछ चारवाकी बुद्धि के लोगों ने पूछा कि महाराज पहले वाला कुँवा क्या हुआ? राजा ने कहा कि उसमें भी स्थान था लेकिन वह राजधानी की पकड़ से दूर है। यह कुँवा सेना द्वारा इस प्रकार सुरक्षित है जैसे चंद्रमा अपनी शीतल किरणों से वियोगी जनों की रक्षा करता है। प्रजा इस उपमा पर बलिहारी हो गयी और दान-पुण्य शुरू हो गया।

प्रकरण : दो

पाठक भूले न होंगे कि प्रक्षेपक ने एक कुँवा खुदवा दिया था। प्रजा अपनी गाढ़ी कमाई का हिस्सा इसमें डालती जा रही थी और ये उसी प्रकार भरता जा रहा था जिस प्रकार कोई सरकारी व्हाट्सएप ग्रुप अफवाहों से भर जाता है। इसकी जानकारियां उसी प्रकार गोपनीय थीं जिस प्रकार शरीफ लोगों के इनबॉक्स।
ऐसा न था कि राजा प्रक्षेपक हाथ पर हाथ धरे बैठा था। उसके तरकश में कुछ कम तीर न थे । उसने महर्षि विश्वबैंकाचार्य की तपस्या कर एक अस्त्र प्राप्त किया उधारास्त्र। महर्षि एडोल्फ़ी से अमोघ अस्त्र झूठास्त्र। गंधर्व आईटी शैल से ऐपास्त्र। लेकिन महर्षि गोएबलेश से मिला दिवयास्त्र सबसे शक्तिशाली था- जुमलास्त्र। नारद से तीनों लोकों में भ्रमण का वरदान भी इसे मिला था लेकिन विगत कुछ मास से यह क्रोणासुर के चक्कर में उसी प्रकार उलझा हुआ था जिस प्रकार टीवी/इंटरनेट के सम्मोहन में आम आदमी उलझा होता है।
क्रोणासुर जब अपना विस्तार करने लगा तो प्रक्षेपक ने प्रजा को एक मंत्र दिया- अधोताल मंत्र। अर्थात घर में बंद रहना। जिस इच्छाशक्ति से सरकारी कर्मचारी लंच के वक़्त काउंटर बंद कर देता है उसी शक्तिशाली इच्छाशक्ति से सबको घरों में बंद रहना था।
पाठक नाम पर न जाएं , मंत्र बहुत सम्मोहनकारी था।
इस बीच प्रक्षेपक के राज्य के श्रमिकों ने अपनी समस्याओं के कारण अप्रवास करना आरंभ किया। क्रोणासुर की अपेक्षा ये बुभुक्षासुर और भेदभवासुर से त्रस्त थे। लेकिन प्रक्षेपक ने इन्हें राजदंड के भय से उसी प्रकार डरा दिया जिस प्रकार आर्ट्स स्ट्रीम ले कर पढ़ने वाले विद्यार्थियों को रिश्तेदार डराते हैं।
नगरी में बहुत से कर्मठ कर्मचारी और नागरिक थे जो वास्तव में इस क्रोणासुर के मायावी प्रहारों को अब तक अपनी वीरता से उसी प्रकार रोके हुए थे जिस प्रकार कोई बॉस अपने जूनियर का इंक्रीमेंट रोकता है।
लेकिन इनके पास अस्त्र शस्त्रों की मात्रा कम थी। प्रक्षेपक ने प्रजा को अपने अंतःकरण की वार्ता के दौरान कुछ तंत्र भी दिए चूंकि मंत्र के साथ कुछ तंत्र भी आवश्यक थे। ध्वनिविस्तार, अग्निलीक और पुष्पांजलि तंत्रों का आह्वान हुआ। प्रक्षेपक ने बताया कि इससे सुरक्षाधिकारियों का मनोबल उसी प्रकार बढ़ेगा जिस प्रकार अज्ञान की हवा से मूर्खता की आग बढ़ती है।
महामुनि हू का अनुमान था कि क्रोणासुर उन्हें पहले खायेगा जो घर के बाहर जाएंगे। लेकिन क्रोणासुर कुछ चमनचम्पक तो था नहीं। यह इच्छाधारी था। इसने मीडिया के सशक्त माध्यमों की खबरों का रूप धारण कर लिया। अब घर के अंदर भी इसने दहशत फैला दी मानो अपनी विजय की दुंदुभी बजा रहा हो!

बढ़ेगी मुल्क की रफ्तार कब तक

बढ़ेगी मुल्क़ की रफ़्तार कब तक
उठेगी मखमली दीवार कब तक
ग़रीबी कब से रोज़े रख रही है
करेंगे क्यूँ मियाँ इफ़्तार कब तक
सबको यूसुफ़ बना कर छोड़ डाला
चलेंगे इस तरह बाज़ार कब तक
वो थाली, फूल, दीये ठीक है सब
दवा दरपन का पर दीदार कब तक
नहीं बाली, फ़क़त मजदूर हैं हम
करेंगे आप छिप कर वार कब तक
हम तो मिट्टी से कटते जा रहे हैं
रहेगी शायरी में धार कब तक

Monday, July 30, 2018

परकाया

डॉ कलाम!
अच्छा हुआ आप चले गए।
अच्छा हुआ आप हिन्दू ह्रदय सम्राटों के पैरों में बैठ गए
अच्छा हुआ आप साईँ बाबा और शंकराचार्यों के आशीर्वाद के ओट तले रहे
वरना अगर आप गए होते और किसी राह
तो कहलाए होते मुल्ला कलाम।
लगते आप पर कटुवा होने के कड़वे आरोप
और अरिंदम चौधरी टाइप के लोग नहीं बुलाते आपको।
डॉ कलाम!
आप वोट बैंक थे भले आप न मानें या न जानें।
भगत सिंह !
इस देश में तुम्हारी फ़ोटो लगाकर
तुम्हारे ज़मीर बेच देने वालों के बीच
कलाम और भला कैसे जीवित रहते?
मनुस्मृति के इस देश में
तुम गीता न बांचते तो कैसे जीवित रहते ?
त्रिशूल, फरसा, गदा, बरछी और भाला वाले भगवानों के देश में
मिसाइल बनाकर ही वैज्ञानिक हुआ जा सकता है कलाम!
माफ़ करना कलाम
तुम अगर वोट बैंक के प्रतीक न होते तो
तुम्हे भारत रत्न नहीं कोई चार्जशीट मिलती
कलाम!
तुमने देश के लिए बहुत कुछ किया
लेकिन देश को राष्ट्र बना दिया जाता है यहाँ
मुल्क़ और वतन की बात मत करो
वरना उठा कर फेंक दिए जाओगे धनुषकोटि


-30 जुलाई 2015
-नीलाम्बुज।
(तर्कपूर्ण  असहमतियों का विशेष स्वागत है)

Tuesday, July 24, 2018

रूह में अपनी आ जाने दे

रूह में अपनी आ जाने दे
ख़ुद को मुझ पर छा जाने दे

तेरी नज़रें दरिया दरिया
कश्ती बन लहरा जाने दे

इश्क़, तसव्वुर सब अफ़साने
बस इक बार सुना जाने दे

मैं तुझको तो क्या समझूँगा
ख़ुद को अभी भुला जाने दे

चाहा था कहना कुछ तुमसे 
समझा ना तूने , जाने दे ।

सांवली लड़कियां

क्या तुमने देखा है  उषाकाल के आकाश को? क्या खेतो में पानी पटाने पर मिट्टी का रंग देखा है? शतरंज की मुहरें भी बराबरी का हक़ पा जाती हैं  जम्बू...